Khabarnama Desk : मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जो विशेष रूप से सूर्य के मकर राशि में गोचर करने के समय मनाया जाता है। इस दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से खरमास का महीना समाप्त होता है और एक नया आरंभ होता है। भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे उत्तरायण, पोंगल, माघ बिहू, और खिचड़ी। इस वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी 2025 को मनाई जाएगी, हालांकि इस दिन को लेकर कुछ भ्रम रहता है कि यह 14 या 15 जनवरी को होगा।
महत्वपूर्ण परंपराएं और मान्यताएं
1. तिल और गुड़ का सेवन
मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ खाने की परंपरा विशेष रूप से की जाती है। तिल और गुड़ न केवल सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, बल्कि ये जीवन में मिठास और रिश्तों में सौहार्द बढ़ाने का प्रतीक माने जाते हैं। तिल और गुड़ का दान भी इस दिन की खास परंपरा है, जो जीवन में कड़वाहट को मिठास में बदलने का संकेत देता है।
2. पतंगबाजी
मकर संक्रांति का पर्व पतंगबाजी के साथ भी जुड़ा हुआ है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम ने मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाई थी, जो इंद्रलोक तक पहुँच गई थी। इसी कारण यह परंपरा आज भी जीवित है, और लोग इस दिन आसमान में रंग-बिरंगी पतंगे उड़ाते हैं।
3. दान और पूजा
मकर संक्रांति के दिन दान का विशेष महत्व है। लोग पुराने कपड़े, तिल, गुड़, अनाज और अन्य वस्तुएं जरूरतमंदों को दान करते हैं। यह विश्वास है कि इस दिन किया गया दान पुण्य की प्राप्ति और जीवन में समृद्धि लाता है। साथ ही, इस दिन विशेष पूजा भी की जाती है, जो शांति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है।
4. गंगा स्नान
सनातन धर्म में पवित्र नदियों का विशेष महत्व होता है और यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है। मकर संक्रांति के दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। कहा जाता है कि इस दिन स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और आत्मा की शुद्धि होती है। कई लोग इस दिन गंगा के किनारे विशेष पूजा और अनुष्ठान भी करते हैं।
मकर संक्रांति को देशभर में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे ‘उत्तरायण’, दक्षिण भारत में ‘पोंगल’, असम में ‘माघ बिहू’, और बिहार में ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है। यह दिन कृषि से जुड़ी खुशहाली, समृद्धि और फसल की नई शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
मकर संक्रांति न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की समृद्धता, विविधता और एकता का प्रतीक भी है। यह दिन लोगों के बीच खुशी और सौहार्द बढ़ाने, रिश्तों को मजबूत करने, और समाज में एकता की भावना को जागरूक करने का अवसर है।