Khabarnama Desk : 23 जनवरी 1897 को जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक हैं, जिनके अदम्य साहस और नेतृत्व ने आजादी के आंदोलन को नई दिशा दी। उनका झारखंड से भी गहरा नाता रहा है। झारखंड में उनकी कई यात्राओं ने स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया।
धनबाद का गोमो स्टेशन नेताजी का था अंतिम पड़ाव
नेताजी को 17 जनवरी 1941 को धनबाद के गोमो स्टेशन पर अंतिम बार देखा गया था। अंग्रेजों से बचने के लिए वह गोमो के पास हटियाटाड़ जंगल में छिपे रहे और स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और अधिवक्ता
चिरंजीव बाबू के साथ गुप्त बैठक की। स्थानीय लोगों ने उनके लिए लोको बाजार स्थित कबीलेवालों की बस्ती में रहने की व्यवस्था की थी।
18 जनवरी 1941 को नेताजी गोमो स्टेशन से दिल्ली के लिए रवाना हुए। उनके इस ऐतिहासिक सफर को झारखंड के लोग आज भी याद करते हैं।
2009 में रेल मंत्रालय ने गोमो स्टेशन का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस गोमो जंक्शन कर दिया था।
मजदूर आंदोलन का केंद्र था धनबाद
1930 में नेताजी ने देश का पहला रजिस्टर्ड मजदूर संगठन, टाटा कोलियरी मजदूर संगठन, धनबाद में स्थापित किया। संगठन के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने मजदूरों को संगठित करने और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया।
गोमो के स्थानीय लोग नेताजी के प्रति अपनी श्रद्धा आज भी बनाए हुए हैं। 18 जनवरी को हर साल नेताजी एक्सप्रेस ट्रेन के लोको पायलट, सहायक पायलट और ट्रेन मैनेजर को सम्मानित किया जाता है। ट्रेन के इंजन पर नेताजी की तस्वीर लगाई जाती है और पूरे सम्मान के साथ रवाना किया जाता है। ये परंपरा वर्षों से जारी ह
1930 से 1941 के बीच नेताजी कई बार झारखंड आए। धनबाद के मजदूर आंदोलनों से लेकर उनकी गुप्त योजनाओं तक, झारखंड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नेताजी की जयंती पर पूरा झारखंड उन्हें श्रद्धांजलि देता है