झारखंड में टुसू पर्व क्यों जुड़ा है आदिवासी समाज की कुंवारी लड़कियों से, जानिए

Nisha Kumari

Khabarnama Desk:  टुसू पर्व झारखंड के विभिन्न जिलों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से मकर संक्रांति के आसपास होता है, लेकिन पूजा का सिलसिला 15 दिसंबर से शुरू हो जाता है। खासतौर पर इस दिन कुंवारी कन्याएं शाम के समय टुसू की पूजा करती हैं।

कुंवारी कन्याओं द्वारा पूजा क्यों?

कुंवारी कन्याओं द्वारा पूजा करने का कारण यह है कि टुसू पर्व कृषि और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। इस दिन लोग फसल की अच्छी कटाई और समाज में खुशहाली की कामना करते हैं। कुंवारी कन्याएं इस पूजा के माध्यम से भविष्य में सुख-समृद्धि और अच्छे वर की कामना करती हैं। इसके साथ ही यह मान्यता भी है कि इस दिन पूजा करने से घर में खुशियाँ और समृद्धि आती है।

टुसू पर्व किस समाज के लोग मनाते हैं और क्यों घरों को सजाया जाता है

टुसू पर्व मुख्य रूप से झारखंड और बंगाल के कृषक समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व में घरों को सजाने की परंपरा समृद्धि, खुशहाली, और फसल की अच्छी कटाई की कामना के प्रतीक के रूप में होती है। लोग घरों को सजाकर प्राकृतिक सौंदर्य, आध्यात्मिक समृद्धि, और सामाजिक एकता का स्वागत करते हैं। यह पर्व परिवारों में खुशियाँ और सुख-शांति का वातावरण बनाने का एक तरीका होता है।

टुसू पर्व और तिल-गुड़ का महत्व

इस दिन लोग एक-दूसरे को तिल और गुड़ बांटते हैं, क्योंकि यह दोनों चीजें सर्दी से राहत देती हैं और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद मानी जाती हैं। यह पर्व धार्मिक होने के साथ-साथ सामाजिक एकता और सामूहिकता का प्रतीक भी है।

टुसू पर्व: परंपराओं और खुशियों का संगम

टुसू पर्व से जुड़ी परंपराएँ, जैसे गीत-संगीत और नृत्य, इसे खास बनाती हैं। लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर एक साथ मिलकर खुशी मनाते हैं। यह पर्व गांवों के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

संस्कृति, कृषि और समृद्धि का संगम

इस प्रकार, टुसू पर्व एक ऐसा त्योहार है जो कृषि जीवन, संस्कृति, और सामाजिक समृद्धि का संगम है, और यह हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

 

Share This Article
Leave a comment