सरहुल महापर्व की शुरुआत, क्या है आदिवासियों के पारंपरिक पर्व की विशेषताएं जानिए

Sneha Kumari

Khabarnama desk : आदिवासियों का महापर्व सरहुल सोमवार (31 मार्च) से शुरू हो रहा है। यह पर्व खासकर सरना समुदाय द्वारा मनाया जाता है और इसके पहले दिन खास पूजा और परंपराओं का पालन किया जाता है। हातमा के जगलाल पाहन ने बताया कि पहले दिन सरना समुदाय के लोग उपवास करेंगे। इस दिन मछली और केकड़ा पकड़ने की परंपरा भी है। युवा लोग तालाब, पोखर या अन्य जलस्रोतों के पास जाकर मछली और केकड़ा पकड़ते हैं। पकड़े गए इन जीवों को घर लाकर पूजा में उपयोग किया जाता है।

जल रखाई पूजा और बलि की परंपरा

शाम को जल रखाई पूजा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पाहन दो नए घड़ों में तालाब या नदी से पानी लाकर सरना स्थल पर लाकर उसे साफ-सुथरा करके रखा जाएगा। इस पूजा में विशेष रूप से मुर्गे-मुर्गियों की बलि दी जाती है। बलि की परंपरा में सफेद मुर्गे की बलि सृष्टिकर्ता के नाम पर, लाल मुर्गे की बलि ग्राम देवता हातू बोंगा के नाम पर, माला मुर्गी की बलि जल देवता इकिर बोंगा के नाम पर, लुपुंग या रंगली मुर्गी की बलि पूर्वजों के नाम पर और काली मुर्गी की बलि बुरी आत्माओं को शांत करने के लिए दी जाती है।

मछली और केकड़े की पवित्रता

आदिवासी समाज में यह मान्यता है कि मछली और केकड़ा पृथ्वी के पूर्वज हैं। उनके द्वारा समुद्र के नीचे पड़ी मिट्टी को ऊपर लाकर पृथ्वी का निर्माण किया गया था। सरहुल के पहले दिन इन्हीं जीवों को समर्पित किया जाता है। पकड़े गए केकड़े को रसोई में टांग दिया जाता है और कुछ महीने बाद इसके चूर्ण को खेतों में छिड़कने की परंपरा है। इसका उद्देश्य यह होता है कि जैसे केकड़े की कई भुजाएं होती हैं, वैसे ही खेतों में फसलों की भरपूर बालियां हों।
सरहुल पर्व आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का एक अहम हिस्सा है, जो पूरे धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

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