झारखंड में फगुआ पर्व की विशेषता और मनाने की परंपरा

Sneha Kumari

Khabarnama desk : झारखंड के आदिवासी समुदाय में सरहुल और होली से पहले फगुआ पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 13 मार्च को मनाया जाएगा। उरांव समुदाय के अनुसार, फगुआ पर्व सोनो और रूपो नामक गिद्धों को ईश्वर (धर्मेस) द्वारा मारने और मानव जाति के उद्धार से संबंधित है।

जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग रांची के सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष डॉ. हरि उरांव बताते हैं कि फगुआ के दिन उरांव समुदाय के लोग सेमल पेड़ की नये पत्ते वाली डालियों को काटकर लाते हैं और उन्हें पुआल से बांधकर विधिपूर्वक स्थापित करते हैं। इसके बाद पाहन (पुरोहित) द्वारा पूजा की जाती है। पूजा के बाद पुआल वाली डाली को जलाया और काटा जाता है, जिसे “फगुआ काटना” या “संवत काटना” कहा जाता है।

अगले दिन, लोग शिकार के लिए जंगलों की ओर जाते हैं, जिसे “सेंदरा” खेलना कहते हैं। इस पर्व को झारखंड की अन्य जनजातियां भी अपने-अपने तरीके से मनाती हैं।

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